अध्याय 4: आँखोंकीभाषा
कभी-कभी शब्दों की जरूरत नहीं होती, जब दो दिल आपस में जुड़ने लगते हैं। उनकी बातों से ज्यादा उनकी आँखें एक-दूसरे को समझने लगती हैं। आकाश और बिट्टू की दोस्ती अब उसी मुकाम पर आ रही थी—जहाँ शब्द कम पड़ने लगे थे और नजरें ही सब कह देती थीं।
एकअनकहीफीलिंग
उस दिन क्लास में सब कुछ सामान्य था। प्रोफेसर अपनी लेक्चर दे रहे थे, लेकिन आकाश का ध्यान कहीं और था। वह चुपचाप अपनी जगह पर बैठा बिट्टू को देख रहा था, जो बड़ी तल्लीनता से नोट्स बना रही थी। उसके बाल चेहरे पर आ रहे थे, और हर थोड़ी देर में वह उन्हें कान के पीछे कर रही थी।
आकाश ने बिना सोचे हल्की मुस्कान के साथ धीरे से बुदबुदाया, "कितनी खूबसूरत लग रही है आज..."
लेकिन अगला ही पल चौंकाने वाला था। बिट्टू ने पेन रोककर उसकी तरफ देखा।
"तुमने कुछ कहा?" बिट्टू ने हल्की आवाज में पूछा।
आकाश थोड़ा घबरा गया, लेकिन फिर मुस्कुराकर बोला, "नहीं, कुछ नहीं। बस ये सवाल थोड़ा मुश्किल लग रहा था।"
बिट्टू ने भौंहें उठाईं, जैसे वह जानती हो कि आकाश झूठ बोल रहा है। लेकिन उसने कुछ कहा नहीं। वह बस हल्का मुस्कुराई और फिर से लिखने लगी।
लेकिन वह मुस्कान आकाश के दिमाग में ठहर गई। क्या वह भी कुछ महसूस कर रही थी? या यह सिर्फ उसकी कल्पना थी?
कॉलेजकैंटीनमेंएकखासलम्हा
क्लास खत्म होते ही दोनों कैंटीन गए। हमेशा की तरह, आकाश ने फिर से कोई मजेदार बात कहकर बिट्टू को हंसाने की कोशिश की।
"बिट्टू, कभी सोचा है कि अगर हमारी जिंदगी कोई फिल्म होती, तो उसमें कौन-कौन से सीन होते?"
बिट्टू हंस पड़ी, "अगर हमारी फिल्म होती, तो उसमें सबसे ज्यादा सीन तुम्हारे कॉफी के बहानों के होते!"
आकाश ने मुस्कराते हुए कहा, "और तुम्हारी मुस्कान के भी।"
बिट्टू उसकी तरफ देखने लगी। यह पहली बार था जब आकाश ने इतनी ईमानदारी से कुछ कहा था। उनकी नजरें टकराईं और कुछ सेकंड के लिए समय जैसे रुक सा गया।
बिट्टू ने हल्के से नजरें झुका लीं और बोली, "तुम बहुत बातें बनाते हो, आकाश।"
"बातें नहीं, सच कह रहा हूँ। तुम्हारी हंसी अब मेरी आदत बन गई है।"
बिट्टू ने कुछ नहीं कहा, बस उसकी आँखों में देखती रही। उसकी आँखों में हल्का सा संकोच था, लेकिन कहीं न कहीं एक अपनापन भी झलक रहा था।
पहलीबार, कुछअलगमहसूसहुआ
शाम को जब दोनों कैंटीन से बाहर निकल रहे थे, तो हल्की ठंडी हवा चल रही थी। आकाश ने देखा कि बिट्टू अपने हाथों को रगड़ रही थी, शायद उसे ठंड लग रही थी।
बिना कुछ सोचे, उसने अपनी जैकेट उतारी और बिट्टू की तरफ बढ़ा दी।
"पहन लो, ठंड लग जाएगी।"
बिट्टू ने पहले मना किया, लेकिन फिर जब आकाश ने हल्के से उसे घूरा, तो उसने बिना बहस किए जैकेट पहन ली।
"कितना ओल्ड स्कूल हो, आकाश!" बिट्टू ने मुस्कुराते हुए कहा।
"ओल्ड स्कूल ही सही, लेकिन दिल से हूँ।"
उसकी इस बात पर बिट्टू फिर से हंस पड़ी, लेकिन इस बार उस हंसी में कुछ और भी था—शायद एक नयी शुरुआत का एहसास।
आँखोंकीभाषा
उस रात जब आकाश अपने कमरे में था, तो उसे बार-बार बिट्टू की हंसी, उसकी मुस्कान और उसकी आँखें याद आ रही थीं।
क्या यह सिर्फ दोस्ती थी, या कुछ और?
बिट्टू भी अपने कमरे में बैठी थी, किताबें खुली थीं, लेकिन ध्यान कहीं और था।
वह जानती थी कि कुछ बदल रहा है—उनकी बातों में, उनकी मुलाकातों में और उनकी नजरों में।
और शायद यही बदलाव उनकी कहानी को एक नई दिशा देने वाला था।